पद्मा देवा जब अपने नये मरीज से मुलाकात करती है तो वह किसी आफिस या काफी बार में नहीं मिलती वह मिलती है होटल के एक कमरे में। यह मुलाकात करीब दो घंटे की होती है जिसमें वह और उनकी क्लाइंट या मरीज बिना कपड़ों के होता है। इसमें मालिश करना या एक दूसरे के साथ दूसरी क्रियाएं भी होती हैं। कई बार दोनो के बीच शारीरिक सम्बन्ध भी स्थापित हो जाते हैं। मुलाकात के अंत में क्लाइंट पद्मा को उसकी सेवाएं लेने के एवज में फीस का भुगतान करता है। और दोनों अपने अपने रास्ते चले जाते हैं। जबतक कि उनकी अगली मुलाकात निर्धारित नहीं हो जाती।
आप सोच रहे होंगे कि पद्मा पुराने धंधे में है तो आप गलत हैं। पद्मा एक वेश्या नहीं है। बल्कि वह एक प्रशिक्षित मनोचिकित्सक है। वह पुरुषों के लिए एक दूसरी औरत बनकर काम करती है जो विभिन्न प्रकार की यौन समस्याओं से जूझ रहे होते हैं। या जो सामान्य यौन सम्बन्ध स्थापित करने की अपनी क्षमता खो चुके होते हैं।
पद्मा देवा पुरुषों को अपने सम्बन्ध स्थापित करने के भय से उबरने में दो-दो घंटे के नौ सत्रों में मदद करती है जिसके लिए वह चार हजार डालर फीस लेती है। उसके क्लाइंट में डाक्टर, वकील और छात्र या ठेकेदार, बिल्डर भी शामिल होते हैं। उसका सबसे कम उम्र का मरीज 25 साल का लड़का और सबसे बुजुर्ग मरीज 65 साल का रहा है। आलोचकों के नजरिये से यह गलत है लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रत्येक दस में से एक व्यक्ति यौन समस्याओं से ग्रस्त हैं।
पद्मा का कहना है कि उसका काम सम्बन्धों को लेकर भ्रातियों के शिकार लोगों का उपचार करना है। पद्मा कहती है कि हालाकि आज हम एक खुले हुए समाज में जी रहे हैं लेकिन जो लोग यौन समस्याओं से ग्रस्त हैं वह अपनी समस्याओं पर बात करने का आत्मविश्वास नहीं जुटा पाते यहां तक कि अपनी साथी से भी नहीं। इसी से सेक्सुअल सेरोगेट की जरूरत पड़ी।
वह इंटरनेशनल प्रोफेशनल सरोगेट एसोसिएशन से प्रशिक्षित हैं पद्मा कहती हैं कि उनकी भूमिका एक मार्गदर्शक की होती है। जो लोगों की मदद करती हैं। अपने मरीज के साथ मुलाकातों के दौरान वह बताती हैं कि कैसे अपनी इच्छाओं को जाहिर करें। कैसे अपनी चिंताओं को नियंत्रित करें।
हालांकि आलोचकों का कहना है कि सरोगेसी से सेक्सुअलिटी को समझाया जा सकता है। लेकिन प्यार के सम्बन्धों और प्यार करने के तरीकों को नहीं समझाया जा सकता। उनकी नजर में सरोगेसी अपने आप में एक समस्या है। हालांकि पद्मा के जरिये सामान्य जीवन में आए लोगों का कहना है कि आप इसे चाहे जो नाम दें लेकिन हमारे जीवन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा है और हम पद्मा के कृतज्ञ हैं।