निसंतान कपल्स बच्चे को पाने के लिए कुछ भी कर सकता है। भारत के पड़ोसी देश, भूटान में सीधे लिंग की पूजा होती आ रही है। खासकर निसंतान कपल्स द्वारा। सुनने में अजीब लग रहा है ना, लेकिन वहां की दीवारों पर लिंग की पेंटिंग्स और कलाकृतियां आम बात है। ये वहां की परंपरा में शामिल हैं। इनमें हर तरह के लिंग शामिल हैं लेकिन वो सब इरेक्टेड हैं।
निसंतान कपल्स क्यों करते हैं लिंग की पूजा
इन सभी लिंग को अलग-अलग कलर्स में पेंट किया गया है। कुछ गिफ्ट रिबन की तरह होते हैँ। कहा जाता है कि लिंग की प्रतिमा बुरी आत्माओं को दूर रखती है और जलन की भावना से बचाती है। ऐसा माना जाता है कि इस तरह की पेंटिंग्स फर्टिलिटी भी बढ़ाती हैं। इसीलिए निसंतान कपल्स इसकी खासकर पूजा करते हैं।
इसके पीछे एक भोगी भिक्षु की कहानी है। दृक्पा कुंले नाम का एक विचित्र बौद्ध भिक्षु भूटान आया था जो कि मदिरापान, महिलाओं के साथ यौन संबंध और कामुकता में लिप्त था। वो इन्हें ही बौद्ध धर्म का तात्पर्य समझाता था। वो कहता था कि ‘घड़े की तली में सबसे अच्छी मदिरा होती है और जीवन का असली आनंद नाभि के नीचे ही मिलता है’।
‘उर्वरता का संत’ कहलाने वाला ये भिक्षु कई दिन मदिरा के नशे में कुंवारी कन्याओं के साथ यौन संबंध बनाने में बिता देता था। भूटान के पश्चिमी भाग में कुछ लोग अभी भी ऐसी जीववादी प्रथाओं को मानते हैं।
सामाजिक रीतियों को न मानने वाला दृक्पा खुद को ‘क्यिशोदृक का पागल’ कहता था। दृक्पा अपरंपरागत बौद्ध धर्म का प्रचार करता था जिसमें वो सामान्य जन का ज्ञानोदय करता था, खासकर महिलाओं का। उसने अपने अनुचरों को शिक्षा दी थी कि मनुष्य को सांसारिक तृष्णा से दूर रहना चाहिए और सादा जीवन व्यतीत करने का अनुसरण करना चाहिए। सादे जीवन से उसका मतलब था कि आध्यात्म की खोज और कामुकता की उदारता. दृक्पा आशीर्वाद के रूप में भक्तों के साथ संभोग करता था। कई निसंतान दंपति हर साल Chimi Lhakhang जो कि एक ‘उर्वरता मठ’ है, तीर्थ करने जाते हैं। यहां बौद्ध भिक्षु उन्हें आशीर्वाद में लकड़ी का लिंग देता है।